Opinion- सच तो ये है दिल्लीवाले पल्यूशन को ठेंगे पर रखते हैं... तो रोकथाम के लिए इतना तामझाम क्यों?

नई दिल्ली: 400, 500, 600, 700 और अब 900 के पार... दिल्लीवालो ये शेयर मार्केट में आपके स्टॉक का बढ़ता भाव नहीं है, ये दिल्ली में खराब होती एयर क्वालिटी का आंकड़ा है। दिल्ली में आज एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 978 दर्ज किया गया है, लेकिन दि

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नई दिल्ली: 400, 500, 600, 700 और अब 900 के पार... दिल्लीवालो ये शेयर मार्केट में आपके स्टॉक का बढ़ता भाव नहीं है, ये दिल्ली में खराब होती एयर क्वालिटी का आंकड़ा है। दिल्ली में आज एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 978 दर्ज किया गया है, लेकिन दिल्लीवाले मस्त हैं, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर फर्क पड़ता तो ये पल्यूशन का आंकड़ा आसमान नहीं छूता, अगर फर्क पड़ता तो दिवाली पर देर रात तक पटाखे ना फोड़े गए होते, फर्क पड़ता तो दिल्ली के आसपास जलने वाली पराली को रोकने के लिए दिल्लीवाले आवाज बुलंद करते, आंदोलन करते, सोशल मीडिया पर #Savedelhi #delhipollution को ट्रेंड करवाते। ऐसा कुछ भी तो नहीं हो रहा है।
दिल्ली में पिछले 4-5 सालों से सर्दियों के मौसम में पल्यूशन का लेवल हाई रहता है। क्या ये बात दिल्लीवालों को नहीं पता? दिल्लीवालों के मुद्दों में बिजली, सड़क, पानी और ट्रैफिक जाम तो है, लेकिन पल्यूशन का कोई स्थान वहीं है। इस बात को साबित करने के लिए किसी आंकड़े की जरूरत नहीं है। आप गूगल सर्च कीजिए और देखिए पल्यूशन को लेकर दिल्ली में कितने जन आंदोलन हुए हैं।

क्यों सरकार को चिल्लाना पड़ रहा है?

हां, पल्यूशन बढ़ाने में आम लोगों की भागीदारी लगातार जरूर बढ़ रही है। दिल्ली सरकार को चिल्ला-चिल्ला कर कहना पड़ रहा है- रेड लाइट पर गाड़ी बंद करें, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और मेट्रो का इस्तेमाल करें। लेकिन दिल्लीवालों को कुछ नहीं सुनाई दे रहा है। दिल्ली में पल्यूशन से हालात बदतर हो गए हैं, उसके बावजूद सड़कों पर अब भी प्राइवेट गाड़ियों का हुजूम देखने को मिल रहा है। पीक ऑवर्स पर आईटीओ, कालिंदीकुज समेत कई मुख्य रास्तों पर जाम की समस्या बरकरार है।

सुप्रीम कोर्ट भी सख्त है

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट काफी सख्त है। सुप्रीम कोर्ट ने बैन के बावजूद दिवाली में फोड़े गए पटाखों और GRAP (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) के स्टेज 4 को लागू करने में देरी को लेकर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट लोगों पर पल्यूशन के होने वाले साइड इफेक्ट को लेकर चिंतित है।

कैंडल मार्च वाले लोग कहां हैं?

दिल्ली सरकार भी पल्यूशन कंट्रोल को लेकर सरकारी दफ्तरों की टाइमिंग से लेकर सड़कों पर पानी के छिड़काव तक, हर संभव प्रयास कर रही है। लेकिन दिल्ली की जागरूक जनता क्या कर रही है? जंतर मंतर पर हर छोटे-बड़े मुद्दों को लेकर कैंडल मार्च निकालने वाले सोशल एक्टिविस्ट दिल्ली की किन-किन सड़कों पर पानी का छिड़काव कर रहे हैं? दिल्ली की ग्रीन बेल्ट में कितने नए पौधे लगाए गए हैं? रेड लाइट पर गाड़ी चालू रखने वाले लोगों को दिन में कितनी बार टोका जा रहा है? पराली जलाने वालों के खिलाफ जन आंदोलन क्यों नहीं शुरू हुआ? ऐसे कई सवाल उठ रहे हैं।


प्लीज अपनी दिल्ली को बचा लो

देश की राजधानी दिल्ली की जनता काफी सूझबूझ से फैसले लेती है। लेकिन पल्यूशन के मुद्दे पर इतना उदासीन रवैया समझ से बाहर है। दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में पल्यूशन ने लोगों का सांस लेना दूभर कर रखा है। दिल्ली-एनसीआर गैस चैंबर में तब्दील हो चुका है। आंखों में जलन और इन्फेक्शन के मामले भी सामने आ रहा है। पल्यूशन का सीधा असर हमारी सेहत पर होता है। दिल्ली में रहने वाले लोगों के पास अभी भी मौका है कि वह पल्यूशन की रोकथाम के लिए खुद से पहल करें। अगर ये आखिरी मौका भी हाथ से निकल गया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए दिल्ली की जहरीली हवाएं अभिशाप बन जाएगी।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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